mango thread in molars



--एक्सट्रेक्ट , आषाढ़ से--|


दीवार जहां ख़तम होती थी
वहां से एक
खिड़की शुरू होती थी|

दीवार और खिड़की के बीच
वो रोज़ खड़ा
होता था|
देख नहीं पाता था
समझ नहीं आता था
की दीवार का मुंह
किस ओर
है
और खिड़की के दांत किधर|

अगस्त का कैलेंडर
अगस्त की मृत हवा
में
फड़फड़ाता , उससे पहले
अपने सूक्ष्म काले
घर रुपी सुराखों
से निकल
चारों और से बादल
उसके सिनेमास्कोप ,
जो खिड़की से शुरू/ख़तम
और
दीवार पर ख़तम/शुरू
होता था,
उसे गाढ़ा काला रंग
देते थे|

बादल रोज़ आते थे
बादल रोज़ जाते थे
जब आते थे
अपने काले स्वर
होठों के भीतर भींचे
सिनेमास्कोप के मसूड़े
लाल करते हुए,
तब
सृष्टि का भार
दोगुना हो जाता था|

वह सोचता था
की अब बरसे नहीं
तो फटेंगे|
यह बात और थी
की उसे काफी देर
से समझ आया की
बादल चारों ओर से नहीं
आते थे
किनारे तो दो ही थे
ओर और छोर|

उसकी 'सहेली' शायद इसी
छल में थी
कि बादल जितनी देर तक
बस ऐसे ही दिशाहीन , गतिहीन
रुके रहेंगे
बारिश उतनी ही घनघोर होगी|
लेकिन सच वह जानता था
और सच ने अपनी ज़बान
लम्बी कर
उसके
गालों को चूम कर
उसके कानों में थूक कर
बार बार
हर बार
एक ही
बात कही थी
"रोज़ बादल आएंगे
रोज़ बादल जाएंगे
जिस रास्ते आएंगे
उसी रास्ते जाएंगे
तू ऊपर ताकता रहेगा
और बस
रह ही जाएगा|
सृष्टि का भार दोगुना
ही रहेगा, तपिश  की
जलन अड़तीस पॉइंट पांच ही रहेगी
और फिर ऐसा सूखा
पडेगा कि फिर कभी
बादलों को देखने से
भी डरेगा|"

हवा अब मृत नहीं थी
कलेण्डर अब सितम्बर का था
इससे पहले कि सितम्बर का
कैलेंडर सितम्बर की जागृत
हवा में फड़फड़ाता ,
वह
दीवार और खिड़की के
के बीच बने सिनेमास्कोप
की तरफ नाखूनों से
गीली/सूखी दीवार
और
खुली/बंद खिड़की
से लड़ता हुआ
ऊपर
बस
ऊपर
कुरेदता गया
घसीटता गया
गिरता गया
चढ़ता गया|

बादलों की कहानी बस
यहीं तक थी|
अब उसे अगर किसी से
मतलब था,
तो वो था
सूरज से|

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