मृत्यू






कोशिश-शब्द बड़ा है, भारी है

जैसे कंधों पर शव

थका हुआ,फंसा हुआ

मुख सिकोड़े, छाती में

धंसा हुआ, गढ़ा हुआ।

 

बस स्मृति है, पराजय की

विवशता है, विषमता है

एक तीव्र चोट, संशय की

हर बार ह्रदय सिमटता है

यह पूछ कर मुझसे, चले जाते हैँ

हर ज़ख्म से पानी रिसता है

क्य़ोंकि खून की औकात नहीँ

जो रोज़ मंडियों में बिकता है।

 

इस शब्द का सृजन ही

उस वाक्य की मृत्यू है

हर बार यह लेखन मिटता है

भटका है पर ज़िंदा है

फिर रक्त निचोड़े लिखता है

 

लिखते जा, आज स्याही है

कि क्षितिज पर सूरज दिखता है।

 

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